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Quit India Movement: महात्मा गांधी के आह्वान ने पूरे देश को प्रेरित किया

9 August 2024: Launched by Mahatma Gandhi in 1942, the movement called for the British to leave India, marking the beginning of the final phase of the freedom struggle. The slogans and speeches from that time continue to resonate, reflecting the indomitable spirit of a nation determined to break free, Quit India Movement: महात्मा गांधी के आह्वान ने पूरे देश को प्रेरित किया, भारत के स्वतंत्रता संग्राम में कई महत्वपूर्ण घटनाएँ हुईं, लेकिन 1942 में महात्मा गांधी द्वारा दिए गए "भारत छोड़ो आंदोलन" का आह्वान एक ऐसी घटना थी जिसने पूरे देश को एक साथ आने के लिए प्रेरित किया। यह आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक मील का पत्थर साबित हुआ, जिसने देश की जनता में ब्रिटिश शासन के खिलाफ जोश और आत्मविश्वास का संचार किया।

Quit India Movement: महात्मा गांधी के आह्वान ने पूरे देश को प्रेरित किया
Quit India Movement: महात्मा गांधी के आह्वान ने पूरे देश को प्रेरित किया

पृष्ठभूमि

भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत से पहले, द्वितीय विश्व युद्ध का समय था और अंग्रेजों ने भारतीय नेताओं से बिना किसी सलाह-मशविरा के भारत को इस युद्ध में शामिल कर दिया था। भारतीय नेताओं को यह बहुत अनुचित लगा क्योंकि ब्रिटिश हुकूमत भारतीयों के अधिकारों की अनदेखी कर रही थी। इस पर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने विरोध जताया और मांग की कि अगर भारत को युद्ध में शामिल करना है तो उसे स्वतंत्रता दी जानी चाहिए। 

गांधीजी ने महसूस किया कि अंग्रेजों के साथ किसी भी प्रकार की बातचीत या सहयोग अब कारगर नहीं हो सकता। उन्होंने सोचा कि अब वक्त आ गया है कि अंग्रेजों से साफ शब्दों में कहा जाए कि उन्हें भारत छोड़ देना चाहिए। इस भावना से प्रेरित होकर, महात्मा गांधी ने 8 अगस्त 1942 को मुंबई के ग्वालिया टैंक मैदान (अब अगस्त क्रांति मैदान) में एक ऐतिहासिक भाषण दिया और "करो या मरो" का नारा दिया। यह नारा ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ जनता के भीतर एक नई ऊर्जा भर गया।

"करो या मरो" का आह्वान

गांधीजी का "करो या मरो" का नारा केवल एक साधारण नारा नहीं था, यह एक स्पष्ट और तीव्र संदेश था जो देश के हर नागरिक को प्रेरित करता था। गांधीजी ने कहा था कि इस बार की लड़ाई तब तक जारी रहेगी जब तक कि भारत को पूर्ण स्वतंत्रता नहीं मिल जाती। यह आंदोलन अहिंसात्मक था, लेकिन इसका उद्देश्य ब्रिटिश शासन को जड़ से उखाड़ फेंकना था। 

गांधीजी का यह आह्वान देश के कोने-कोने में गूंज उठा। किसानों, मजदूरों, विद्यार्थियों, और महिलाओं समेत समाज के हर वर्ग के लोग इस आंदोलन में शामिल हो गए। सभी ने यह ठान लिया था कि अब अंग्रेजों को भारत छोड़कर जाना ही होगा। इस आंदोलन का असर इतना व्यापक था कि ब्रिटिश शासन को भी इसे नज़रअंदाज़ करना मुश्किल हो गया। 


आंदोलन का व्यापक प्रभाव

भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान, देश के विभिन्न हिस्सों में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए। सरकारी दफ्तरों, पुलिस थानों, और रेलवे स्टेशनों पर लोगों ने धावा बोला। अंग्रेजों के प्रति जनता का गुस्सा साफ-साफ दिखाई दे रहा था। हालांकि, यह आंदोलन पूरी तरह से अहिंसक था, लेकिन कुछ जगहों पर यह हिंसक भी हो गया। 

ब्रिटिश सरकार ने इस आंदोलन को कुचलने के लिए कड़ी कार्रवाई की। गांधीजी, जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल समेत कांग्रेस के प्रमुख नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। गांधीजी को पुणे के आगा खान पैलेस में नजरबंद किया गया। अंग्रेजों ने सोचा कि नेताओं की गिरफ्तारी से आंदोलन की आग ठंडी हो जाएगी, लेकिन हुआ इसका बिल्कुल उल्टा। नेताओं की गिरफ्तारी से लोगों में और भी अधिक आक्रोश भर गया और वे बिना किसी नेतृत्व के भी इस आंदोलन को जारी रखने लगे।

गांधीजी की गिरफ्तारी के बावजूद, उनके विचार और उनका संदेश पूरे देश में गूंजता रहा। देश के हर कोने में लोग अंग्रेजों के खिलाफ सड़कों पर उतर आए। बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात और मद्रास (अब तमिलनाडु) जैसे राज्यों में इस आंदोलन का व्यापक प्रभाव देखा गया। विशेष रूप से युवा और छात्र इस आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे थे। 

 महिलाओं की भागीदारी

भारत छोड़ो आंदोलन में महिलाओं की भूमिका भी उल्लेखनीय रही। जहां एक ओर अरुणा आसफ अली ने इस आंदोलन में नेतृत्व किया और ग्वालिया टैंक मैदान में तिरंगा फहराया, वहीं दूसरी ओर महिलाओं ने अंग्रेजों के खिलाफ प्रबल विरोध प्रदर्शन किए। कस्तूरबा गांधी और सुचेता कृपलानी जैसी महिलाओं ने भी इस आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। महिलाओं ने न केवल प्रदर्शन किए, बल्कि वे भूमिगत गतिविधियों में भी शामिल हुईं, जिनसे आंदोलन को गति मिली।

आंदोलन की सफलता और स्वतंत्रता की ओर कदम

हालांकि भारत छोड़ो आंदोलन के तुरंत बाद देश को आजादी नहीं मिली, लेकिन इस आंदोलन ने ब्रिटिश हुकूमत की नींव हिला दी। अंग्रेजों को एहसास हो गया कि अब वे भारत पर लंबे समय तक राज नहीं कर सकते। इस आंदोलन ने भारतीयों के मन में स्वतंत्रता की आग को और भी प्रबल कर दिया और देश की आजादी की राह को आसान बना दिया। 

ब्रिटिश सरकार ने इस आंदोलन को दबाने की बहुत कोशिश की, लेकिन वे भारतीय जनता की एकजुटता और दृढ़ निश्चय के सामने असफल रहे। 1942 का यह आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक निर्णायक मोड़ साबित हुआ। 

 निष्कर्ष

भारत छोड़ो आंदोलन महात्मा गांधी के नेतृत्व में भारतीय जनता के धैर्य, साहस, और संकल्प का प्रतीक है। गांधीजी का "करो या मरो" का नारा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में अमर है। इस आंदोलन ने न केवल अंग्रेजों को भारत छोड़ने पर मजबूर किया, बल्कि भारतीय जनता को यह विश्वास दिलाया कि वे एकजुट होकर किसी भी अत्याचारी शासन को हरा सकते हैं।

इस आंदोलन की सबसे बड़ी उपलब्धि यह थी कि इसने पूरे देश को एकजुट कर दिया। समाज के हर वर्ग के लोग एक साथ आए और स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया। यह आंदोलन भारतीय इतिहास में एक ऐसे अध्याय के रूप में दर्ज है जिसने हमें यह सिखाया कि अगर हम एकजुट हों, तो कोई भी ताकत हमें अपने लक्ष्य से नहीं रोक सकती।

आखिरकार, यह आंदोलन भारत की स्वतंत्रता की नींव बना और पांच साल बाद, 15 अगस्त 1947 को, भारत ने अपनी आजादी प्राप्त की। महात्मा गांधी के इस आंदोलन ने न केवल ब्रिटिश शासन के अंत की शुरुआत की, बल्कि यह भी सुनिश्चित किया कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की ज्वाला कभी बुझने न पाए। 


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