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What is the Article 280? The Finance Commissions (IAST): Vitta Āyoga) the commission is periodically constituted by the President of India under Article 280 of the Indian Constitution to define the financial relations between the central government of India and the individual state governments.
No money out of the Consolidated Fund of India or the Consolidated Fund of a State shall be appropriated except by law and for the purposes and in the manner provided in this Constitution.
संविधान के अनुच्छेद 280(1) के अंतर्गत यह प्रावधान किया गया है कि संविधान के प्रारंभ से दो वर्ष के भीतर और उसके बाद प्रत्येक पाँच वर्ष की समाप्ति पर या पहले उस समय पर, जिसे राष्ट्रपति आवश्यक समझते हैं, एक वित्त आयोग का गठन किया जाएगा।
इसके मद्देनज़र परंपरा यह है कि पिछले वित्त आयोग के गठन की तारीख के पाँच वर्षों के भीतर अगले वित्त आयोग का गठन हो जाता है, जो एक अर्द्धन्यायिक एवं सलाहकारी निकाय है।
15वें वित्त आयोग का कार्यकाल 2020-25 तक होगा।
इसी परंपरा को आगे बढाते हुए संवैधानिक प्रावधानों के तहत केंद्र सरकार ने 22 नवंबर, 2017 को 15वें वित्त आयोग के गठन को मंज़ूरी दी थी। 15वें वित्त आयोग का कार्यकाल 2020-25 तक होगा।
अब तक जितने भी वित्त आयोग गठित हुए हैं, उनको लेकर कोई-न-कोई विवाद बना ही रहा है। कुछ ऐसा ही विवाद 15वें वित्त आयोग के नियमों और शर्तों (Terms of Reference) को लेकर चल रहा है।
केंद्र सरकार द्वारा हर पाँच साल पर वित्त आयोग का गठन किया जाता है, ताकि केंद्र व राज्यों के बीच और एक राज्य से दूसरे राज्यों के बीच राजस्व के बँटवारे का तरीका तय किया जा सके। देश में राजस्व सामूहिक रूप से इकट्ठा किया जाता है और फिर उसके बँटवारे का एक फॉर्मूला तय होता है। राजस्व के बँटवारे का तरीका और शर्तों को तय करते समय वित्त आयोग किसी भी राज्य के राजस्व प्रदर्शन के अलावा कई अन्य मानदंडों पर भी गौर करता है और उसी के बाद राजस्व का बँटवारा होता है। इसके लिये वित्त आयोग अक्सर राज्य की आबादी और उसकी आय के फासले को ध्यान में रखता है। इससे राजस्व बँटवारे का पैमाना अधिक गरीबी पर आकर ठहर जाता है।
15वें वित्त आयोग द्वारा 2011 की जनगणना को ध्यान में रखते हुए राज्यों के बीच संसाधनों का आवंटन किये जाने की अनुशंसा की गई है। देखा जाए तो नवीनतम जनगणना के आँकड़ों का प्रयोग किया जाना उचित प्रतीत होता है, किंतु इससे उत्तरी और दक्षिणी राज्यों के मध्य विवाद का एक सबसे गंभीर मुद्दा उभर रहा है। जनगणना आधार के बदलाव के कारण सामाजिक-राजनीतिक क्षेत्र में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
इसमें उन दक्षिणी राज्यों को नुकसान होने की ज़्यादा संभावना है, जो दशकों से अपनी आबादी को नियंत्रित करने के लिये बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं। उनके यहाँ कम जनसंख्या वृद्धि स्वाभाविक रूप से ‘कम प्रजनन दर’ से जुड़ी हुई है, जो बेहतर शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं और विकास का एक परिणाम है। ऐसे में उन्हें विकास संबंधी कार्यों में उनकी सफलता के कारण निधि आवंटन में नुकसान उठाना पड़ सकता है जिसे दंड की तरह माना जा रहा है। यही कारण है कि मुख्यतः दक्षिणी राज्य 15वें वित्त आयोग के नियमों तथा शर्तों पर गंभीर आपत्ति जता रहे हैं।
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