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कविता - मजबूर नहीं
गरीब हूं इसीलिए सब से
दूर हूं
मजाक बनाते हैं लोग मेरा
कर देते हैं अपमान मेरा
झुका देते हैं मुझे अपने
कदमों पर
नहीं समझते मेरे बातों को
हर दम तौलते रहते पैसे की
तराजू में
गरीब हूं मजबूर नहीं।
उनके सोचने के लिए गरीब
हूं
पर मैं अपने हिम्मत के
लिए अमीर हूं
उनसे बड़ा है हौसला मेरा
कुछ कर दिखाने का जज्बा
है मेरा
मैं गरीब नहीं मैं दिल से
अमीर हूं।
धन्यवाद 🙏 काजल
साह: स्वरचित
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