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He who sees everywhere the Self (the eternal soul) in all existences

He who sees everywhere the Self (the eternal soul) in all existences
He who sees everywhere the Self (the eternal soul) in all existences: ©Provided by Bodopress/Mithilesh, Ajmer

He who sees everywhere the Self (the eternal soul) in all existences and all existences in the Self, feels no hatred for anything.

यस्तु सर्वाणि भूतानि आत्मन्येवानुपश्यति।

सर्वभूतेषु चात्मानं ततो न विजुगुप्सते॥


जो निः संदेह सभी प्राणियों को अपनी आत्मा (परमात्मा के अंश) के रूप में देखता है, और सभी प्राणियों में स्वयं की आत्मा (परमात्मा के अंश) का दर्शन पाता है, वह किसी से घृणा नहीं करता।

हम में अंश परम का है,

सब में अंश परम का है,

द्वेष घृणा का काम नहीं,

यह संसार परम का है।

वह जो सर्वत्र आत्मा (सनातन आत्मा) को सभी अस्तित्वों में और सभी अस्तित्वों को स्वयं में देखता है, उसे किसी भी चीज़ से घृणा नहीं होती है।

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